Tuesday, May 17, 2022

अप्सरा

 


    ‘ये हसीन वादियां, ये शमां, इस चांदनी रात में बहती समीर,पेड़ो की सरसराती टहनियों से छनकर आती हुई प्रकाश किरणे। श्याम... मुझे तुमसे प्यार हो गया है। मैं भी तुम्हारी आंखों में अपने लिये प्यार के सागर छलकते हुए देख रही हूं। तुम्हारा रोम-रोम मुझे पाने को तड़प रहा है, लगता है तुम्हे मुझ से कुछ चाहिये। ऐसा कुछ जिससे तुम्हारी आत्मा तृप्त हो सके। तुम्हारे सीने में एक तूफान की आमद बन रही है। इसे रोको मत, प्रचंड वेग से बाहर आने दो। यह लावा अगर रूक गया तो तुम्हारा शरीर जल कर खाक हो जायेगा---


सत्य घटना ताजेवाला – 3 जून 1999

 

                    कहानी

                                                        अप्सरा

                                                                                         नफे सिंह कादयान



     यमुनानगर का ताजेवाला हैड पूरे उत्तर भारत में मशहूर है। यह पहाड़ों की तलछटी में  यमुना नदी पर उत्तर प्रदेश और हरियाणा में जल बंटवारे के लिये बनाया गया है। इसके साथ ही उत्तर की तरफ शिवालिक की पहाड़ी श्रृंखला शुरू हो जाती है। मैं आजकल यहां  एक जमींदार की जमीन पर ट्रैक्टर ड्राईवर के रूप में रह रहा हूं। यहां उसकी नदी तट के साथ लगती अस्सी एकड़ जमीन है जिस पर गन्ना, गेहूं, चना, मुगफली, सरसों, बाजरा जैसी  फसलें उगाई जाती हैं। चार-पांच एकड़ में अमरूद का बाग भी लगा हुआ है जिसमें           बहुत मोटे मीठे इलाहाबादी अमरूद लगते हैं। इन अमरूदों में बीज कम होते हैं और गुदा ज्यादा। वैसे तो यह बहुत दर्शनीय और सुंदर जगह है मगर अब जून का महीना है। जून में यहां आसमानों से शोले बरसते हैं। यहां के पहाड़ आग के दरिया में नहा कर तरोताजा हो जुलाई की बारिश में बला के हरियाले तोते बन जाते हैं। यहां कोई है जो हर वर्ष पहाड़ों पर आग लगा देता है।

    इन आग लगाने वालों के बारे में स्थानीय लोग बतलाते हैं कि ऐसा चरवाहे करते हैं जिससे यहां पहाड़ों पर वृक्षों से गिरे पत्ते टहनियां जल जातें हैं, और कुछ दिन बाद वर्षा होने पर नई घास उग आती है। कुछ का ये भी कहना है कि आग भांग पीने वाले भंगेड़ी लगाते हैं। यहां पहाड़ों पर भांग के बहुत पौधे उगते हैं जो पत्ते टहनियों की वजह से पनप नही पाते इसलिये वे यहां आग लगा देते हैं।    

    रात को जब भी मैं ये जलते हुए पहाड़ देखता हूं तो यहां से ऐसा दिखाई देता है जैसे वहां उपर पहाड़ के आंचल में नर्क की आग जल रही हो। एक ऐसी आग जिसमें लाइनों में सैकड़ों चिताएं एक साथ जल रही हों। आग के बवंडर हैं कि दूर से पेड़-पौधें, झाड़ियों को निगलते हुए से प्रतीत होते हैं। वहां आग देखकर मुझे और भी अधिक गर्मी का अहसास होने लगता है।गर्मियों में मुझे जब भी मौका मिलता पांच-सात दिन के लिये पहाड़ों पर शीतल पवन के झोकों का आन्नद लेने चल देता हूं मगर मैं इस बार यहां फंस गया। इस साल कहीं नही जा पाया इसलिये अब मन मयूर कल्पना में ही कई बार ठण्डे पहाड़ों के दर्शन कर चुका है।

     पहाड़ मुझे इतने पसंद है कि कश्मीर से लेकर आसाम तक अनेक स्थानों पर जा चुका हूं। कुल्लु, शिमला, मनाली जैसे पर्यटन स्थलों पर मौसम सुहाना रहता है पर यहां भीड़ बहुत रहती है। मुझे तो एकदम शांत, मानव आबादी रहित पहाड़ अच्छे लगते हैं। ऐसे पहाड़ जहां मैं हूं, एकांत विराना हो,पेड़-पौधे ढेरों परिंदे हों, ऊंची-ऊंची चोटियां हों जिन पर मस्त समीर बह रही हो।

    हिमाचल के हरिपुर धार जैसे स्थान शिमला से भी अधिक ठण्डे हैं पर वहां दर्शनीय स्थल कम होने के कारण न के बराबर पर्यटक घूमने जाते हैं। ये मेरे लिये बहुत अच्छा है। रंग बिरंगे पक्षियों से भरे मुझे वह स्थान इतने पसन्द आये की अब हर वर्ष जून में वहीं जाने लगा। उत्तराखण्ड में एक बहुत ही सुनसान जगह चकराता है जो देहरादून से लगभग पचास, साठ किलो मीटर उपर दक्षिण पश्चिम की तरफ पड़ता है, वहां जाने का मेरा बड़ा मन रहा है मगर जा नही पाया। मैने चकराता की हसीन वादियों के अपने एक मित्र से बहुत किस्से सुन रखे हैं।

    पिछले वर्ष जब मै हरिपुर धार गया था तो वहां मुझे अपने ही इलाके का एक व्यक्ति मिल गया। बातों ही बातों में मित्रता हो गई। वह भी मेरी तरह एकांत पहाड़ी स्थानो को पसंद करता था। रात को हम एक ही लॉज मे ठहरे। शाम को इक्कठे खाने-पीने का दौर चला तो मैं उस पर हरिपुर धार के पहाड़ों की ऊंचाई, गहरी घाटियों की तारिफ करने लगा।  

   'ये तो कुछ भी गहरी नही हैं यार, पिछले साल मैं चकराता गया था। वहां के पहाड़  देखेगा तो चकराते में सचमुच चकरा जायेगा। गर्मियों में अगर वहां गया तो ठण्डी हवाओं से बहुत सकून मिलेगा।’ वह उतराखण्ड के देहरादून क्षेत्र के पहाड़ो की तारिफ करते हुए बोला था। 

   'ऐसा है तो अगले वर्ष वहीं डेरा डाल लूंगा, मेरे कौनसा यहां के पहाड़ रजिष्ट्र करवाए हुए हैं।’ मैं उससे हंसकर बोला था। उसने चकराते की इतनी तारिफ कर दी थी कि मैं वहां इस साल गर्मी में जाना चाहता था पर जा नही पाया। बस कल्पना में ही वहां के पहाड़ों की रूपरेखा बनाता रहा। मेरी समस्या यह है कि जहां मेरे जाने की त्रीव इच्छा होती है, जो चीज मुझे हांसिल नही होती वह स्वप्न पूरी कर देता है मगर सपने का मेरी इच्छा पूरी करने का तरीका कई बार बहुत खतरनाक होता है जो मुझे डराता भी है और हंसाता भी है।  

     यहां ताजेवाला में गर्मी के महीने में पहाड़ों पर जब आग लगती है तो और अधिक गर्मी लगने लगती है। आज सुबह से ही मैं भंयकर गर्मी की वजह से दो बार यमुना मैया में गोता लगा कर आ चुका हूं। दिल कर रहा है कि सबसे ऊंचे ऐसे पहाड़ पर पहुँच जाऊं जहां ठण्डी समीर बह रही हो, जहां बर्फ ही बर्फ हो। मैने रात को भोजन करने के बाद झोपड़ी से बाहर खाट डाल ली। आजकल कुछ दिन के लिये गांव से मेरी पत्नी मेरे पास आई हुई है।  

     मेरे दोनों बच्चे क्योंकि गांव के स्कूल में पढ़ते हैं इसलिये वह उनके पास गांव में ही रहती है। वहां मेरी बेबे और भाई है। मैं उसे कभी-कभी अपने पास बुला लेता हूं तो वह चार-पांच दिन मेरे साथ रहकर वापिस गांव लोट जाती है। पत्नी आज मेरे साथ ही है। वह झोपड़ी में बरतन साफ कर बाहर आकर मेरे साथ लेट गई। उसके हाव-भाव से मैने देखा की प्यार करने के लिये उसका आज कुछ रोमांटिक मूड है मगर मुझे गर्मी परेशान कर रही है। फिर भी मैं ऐसे मौके को हाथ से नही जाने देना चाहता। जब थोड़ा रोमांस का दौर चलने को हुआ तो उसके बालों में लगा पेनी नोक वाला क्लीप मेरे माथे पर चुभ गया। मेरा कुछ तो गर्मी के कारण मूड नही बन रहा था उपर से पिन चुभी तो मैने उसे अपने से दूर धकेल दिया। वह बोली कुछ नही बस मुंह बनाते हुए मेरी तरफ पीठ कर के लेट गई।

    ‘नाराज हो गई क्या? यार गर्मी बहुत है, सुबह जब ठण्डी हवा चलेगी तो हम जी भरकर रोमांस करेंगे।’ मैं पीछे से आलिंगन कर उसकी गरदन पर चुंबन लेता बोला मगर तब तक उसके खर्राटे बजने शुरू हो गए। उसका सोना तो कमाल का है। मैं अच्छी नींद लेने के लिये ओशो की किताबें पढ़ता हूं और मेरी श्रीमति जी लेटते ही सो जाया करती है। 

   वहां पर सरकण्डों की बनाई हुई दो-तीन झोपड़ियां थी जिनमें हम सोया करते थे। क्योंकि हम वहां अकेले थे इसलिये आज गर्मी की वजह से बाहर ही लेट गए। कुछ देर तो गर्मी में नींद नही आई फिर ग्यारह बजे के करीब यमुना नदी की तरफ से हवा का ऐसा ठण्डा पावन झोंका आया की मेरी पलके भारी होने लगी और फिर......  

     बहुत मोटे टायरों की मोटरसाइकिल है जिसे मैं चला रहा हूं। इसका रंग काला है और टंकी के दोनों तरफ फायर का टेटू लगा है। ये मेरी है या किसी और की ये मैं नही सोच रहा। इसका हैंडल कार के स्टेरिंग जैसा है। मोटरसाइकिल तुफानी गति से चल रही है। उसके चलने से बहती हुई बहुत गर्म हवा मेरे शरीर से आकर टकरा रही है। मेरे कानों में गर्म हवा इस प्रकार से भवंर बनाती हुई चल रही है जैसे तेज चलते पानी में गोल भवंर बनते हैं। कानों में हवा से सीटी की आवाज सी आ रही है। 

   ‘बस अब थोड़ी देर की और परेशानी है। उन ऊंचे पहाड़ो के शिखरों पर पहुंचते ही ये हवा ठण्डी हो कर मेरे मन को सकून देने लगेगी।’ मैं मन ही मन अपने आप को दिलाशा देता हुआ गर्म हवा को झेलता चल रहा हूं। काफी देर चलने के बाद आगे एक कैंची मोड़ आ गया जिसको पार करते ही मुझे ऊंचे-ऊंचे पहाड़ दिखाई देने लगे। ये बहुत ही ऊंची पहाड़ो की श्रृंखलाएं थी जिसमें मुझे अनेक पहाड़ लम्बी कतार में दिखाई दे रहे हैं। इन पहाड़ो को देख कर मैं उल्लास से भर गया और मोटरसाइकिल पर उछल-उछल कर बच्चों की तरह याहू, याहू, हुर्रे हुर्रे, चिल्लाने लगा।  

     मैं कई घण्टे तक मोटरसाइकिल चलता रहा। अब मुझे ऐसा आभास होने लगा जैसे ये पहाड़ मुझसे दूर भाग रहे हैं। वहां सड़क टेढ़ी-मेढ़ी थी जिस से कई बार पहाड़ मेरी नजरों से ओझल हो रहे थे। जब मुझे पहाड़ दिखाई नही देते थे तो मैं निराशा में घिर जाता था पर जब फिर से दिखाई देते खुश हो जाता। अब की बार एक मोड़ पर पहुंच कर मुझे पहाड़ फिर दिखाई दिये तो मैने सड़क छोड़ दी और पहाड़ की तरफ सीध बांध कर रेतीले मैदानों में चलने लगा।

     मेरी मोटरसाइकिल अब ऐसे सपाट मैदान में दोड़ रही थी जिसमे रेत ही रेत थी। वहां रेत मेरी मोटरसाइकिल के पहियों से छिटक कर पीछे की तरफ उड़ने लगी। ऐसे जेसे टायर से निकल कर पानी की एक धारा उछलती जा रही हो। आगे मैदान में कहीं-कहीं बेरों की झाड़ियां शुरू हो गई जिन पर हरे, लाल, पीले, कच्चे-पक्के बैर लगे थे। थोड़ा आगे जाने पर मुझे अपने चारों तरफ झाड़ियों के घने झुरमुट से नजर आने लगे। यहां इतने बेर थे कि वे पक-पक कर जमीन पर ढेरों की शक्ल में पड़े हुए थे।

    अब मैं पहाड़ों के बिल्कुल नीचे आ गया था। आगे इतना घना झाड़-झंखार था कि कुछ समझ ही नही आ रहा था कहां से निकल कर आगे पहाड़ तक जाऊं। थोड़ा आगे जाकर मोटरसाइकिल रोक मैं उन बेरों के झुण्डों में रास्ता देखने लगा। तभी मुझे वहां झाड़ियों के पीछे किसी स्त्री के पहाड़ी गीत गाने की आवाज सुनाई दी, साथ में वहां बकरियों के मिमयाने और उन के गले में बंधी घंटियों के टनटनाने की आवाजें भी सुनाई देने लगी।

     मैं मोटरसाइकिल खड़ी कर झाड़ियों के पीछे गया तो वहां दर्जनों बकरियां पत्ते, बेर खा रही थी। वहां उनके पास एक अधेड़ सी उम्र की पहाड़ी स्त्री बड़े से पत्थर पर बैठी हुई मधुर गीत गा रही थी। पहाड़ी भाषा होने के चलते गीत मेरी समझ में नही आ रहा था पर उसकी लय गजब की थी। उस पहाड़न की आवाज कोयल की तरह सुरीली थी। 

    मुझे देख वह चुप हो गई और मेरी तरफ इस प्रकार देखने लगी जैसे मैं कोई वांछित व्यक्ति हूं। ऐसा व्यक्ति जिसने उसके एकांत में खलल डाल दिया हो। ‘यहां कोई बस्ती है उपर पहाड़ पर। ऐसी बस्ती जहां मुझे सकून मिल सके, जहां शीतल पवन चलती हो। मुझे वहां पहुंचना है।’ मैंने उससे पूछा तो वह उल्टा मेरे से ही सवाल करती बोली- ‘तुम यहां क्या रहे हो, कहां से आए हो? यहां क्या सड़क है जो तुम मोटरसाइकिल पर आवारागर्दी कर रहे हो। आगे कैसे जाओगे आगे गहरी खाई है।’

   ओह! खाई है आगे। मैं तो वेसे ही गर्मी से परेशान होने के चलते आप के पहाड़ों पर पांच-सात दिन सकून से काटने आ गया। तो अब क्या मुझे वापिस सड़क पर जाना पड़ेगा? ’ मैंने उससे पूछा।

   ‘पीछे नही जाना पड़ेगा। ऐसा कर, वो पचास गज आगे जो बाई और पगडण्डी दिखाई दे रही है, वह आगे जाकर पक्की सड़क पर चढ़ेगी। वह सड़क उपर एक बस्ती में जाती है मगर वहां तक पहुंचने में तुझे अभी कई घण्टे लगेंगे।’ वह औरत बेरूखी से बोली तो मुझे लगा जैसे वो भी मेरी तरह गर्मी से परेशान है। मैने पास की झाड़ी से दो-तीन लाल पके बेर तोड़ कर खाए और मोटरसाइकिल चालू कर झाड़ों से बचता हुआ पहाड़न की बतलाई पगडण्डी पर चलने लगा।

     बकरियों वाली स्त्री ने सही कहा था की उन झाड़ो से आगे गहरी खाई थी। जब मैं पगडण्डी पर आगे बड़ा तो मुझे वह खाई दिखाई देने लगी। पगडण्डी उसके किनारे पर बनी थी। चार-पांच किलोमीटर आगे जाकर पक्की सड़क आई तो मेने राहत की सांस ली। थोड़ा सा आगे चलने पर ही ऊंचे पहाड़ आ गए। यहां से आगे पहाड़ की चढ़ाई शुरू होने लगी थी।  

     मैं थोड़ा आगे बड़ा तो वहां सड़क पर पुलिस नाका लगा था। दस बारह कारें, बसें, छोटे टैम्पू जैसे वाहन कतार में खड़े थे। आगे पुलिस ने बैरियर नीचे कर रोड बंद किया हुआ था। 

  'क्या बात है भाई जी... पुलिस ने रोड़ ब्लॉक क्यों कर दिया? ’ मैने बाईक एक टैक्सी के पास रोक उसके पास खड़े व्यक्ति से पूछा।

   'क्यों, पहली बार जा रहा है पुत्र इन ऊंचे पहाड़ों पर? आगे इतना दुर्गम संकरा रास्ता है जिस पर वाहन की साईड से तेरी ये बाईक भी क्रॉस नही होगी। पहले उपर  गए वाहन वापिस आएंगे फिर नाका खुलेगा।’ वह बोला।

  'उपर?, कहकर मैं यों ही मजाक में आसमान की तरफ देखने लगा। 

  'ओये काके उपर आकाश में नही, वहां पहाड़ पर। वह हंसकर बोला।

   ओह! तब तक मैं यहीं चाय पानी पी लेता हूं।’ वहां मुझे सड़क के बाईं तरफ एक खोखा रखा दिखाई दे रहा था, जिसमें एक पहाड़ी व्यक्ति सिर पर गोल कढ़ाईदार टोपी रखे चाय बना रहा था। मैने बाईक साईड में लगाई और सड़क किनारे बने खोखे पर चाय पीने लगा। कुछ देर बाद उपर पहाड़ की तरफ से वाहनों का एक रैला सा आया तो पुलिस वालों ने बैरियर उपर उठा दिया। आने वाले वाहन नीचे मैदानी इलाकों की तरफ चले गए। नाका खुलते ही उपर पहाड़ पर जाने वाले वाहन भी चल दिए। 

   चाय पीने के बाद मोटरसाइकिल चालू कर मैं भी वाहनों से काफी पीछे धीमी रफ्तार से पहाड़, घाटियां देखते हुए उंचाई की तरफ बडऩे लगा। आहिस्ता-आहिस्ता चलती हुई मोटरसाइकिल मेरी प्रकृति को देखने की भूख को शांत कर रही थी। रास्ते में कोई नई घाटी, पहाड़, पत्थर, पेड़, फल फूल देखते ही मैं रूक जाता। फिर उसको पांच सात मिनट निहारने के बाद आगे बड़ता।

   ऐसा लग रहा था जैसे मैं मोटरसाइकिल बहुत सजग हो कर चला रहा हूं। पता नही मुझे क्यों लग रहा था कि ये मुझे मारते हुए देर नही लगाएगी। इस इलाके में अगर थोड़ा सा भी मेरा ध्यान बंटा तो वैलकम सैकड़ों फुट नीचे खाई में जाकर होगा। फिर मेरी टांग कहीं पड़ी  होगी और बाजु कहीं। पर रब खैर करे, मेरे किसी दुश्मन के साथ भी ऐसा न हो। 

    ज्यों ही मैं संकरे मार्ग पर आया, गहरी घाटियां, उंचे पहाड़ देख कर दंग रह गया। कुछ आगे जाने पर मै मोटरसाइकिल रोक नीचे खाई में झांकने लगा। वह खार्ई लगभग आठ-दस किलोमीटर गहरी थी। नीचे खड़े पेड़ मुझे छोटे-छोटे पौधों के समान दिखाई दे रहे थे। ऐसा लगता था जैसे नीचे हवा चल रही हो क्योंकि नीचे मुझे पेड़ जोर-जोर से हिलते हुए दिखाई दे रहे थे। ऐसे जैसे मुझे इशारे कर अपने पास बुला रहे हों। उस खाई के पार वाले पहाड़ की उंचाई देखी तो उसकी उपरी चोटी देखने के लिये मेरी गरदन नब्बे के कोण पर पीछे झुक गई। मैने अपनी पूरी जिंदगी में इतने उंचे पहाड़ और गहरी अंधकारमय घाटियां नही देखी थी।  

   पहाड़ पर जाने वाला यह रास्ता इतना संकरा था की मुझे मोटरसाइकिल बहुत ध्यान से चलानी पड़ रही थी। अभी चार-पांच किलोमीटर आगे ही ही गया था कि अचानक भेड़, बकरियां सड़क पर आ गई। ऐसा लगता था जैसे इस इलाके में भेड़ों और बकरियों की भरमार है। अगर मोटरसाइकिल तेज होती और उसमें डिस्क ब्रेक न होते तो जरूर किसी बकरी से टकरा जाती। मैने ब्रेक लगाए तो भेड़, बकरियां खाई में नीचे की तरफ दोड़ी।

   'ये गिरेंगी नीचे।’ चिल्लाते हुए मैं मोटरसाइकिल रोक उससे नीचे उतर कर खाई में झांकने लगा। ये देख कर मैं हैरान रह गया की भेड़े, बकरियां वहां तीखी ढलान पर नीचे उगी हुई झाडिय़ों में चरने लगी थी। ढलाने ऐसी थी कि लगभग नीचे की तरफ झुकी हुई थी मगर फिर भी वे नीचे नही गिर रही थी। तभी मुझे अपने पीछे से किसी स्त्री के जोर से हंसने की आवाज सुनाई दी।

    'ये खाई में यूं ही गिर जाती तो हमारे पास अब तक एक भी नही बचणी थी।’ मैने पीछे मुड़कर देखा तो बाईक के पीछे न जाने कहां से एक पहाड़ी स्त्री अचानक प्रकट हो गई।

  'तेरी हैं ये क्या?, उसे हंसता देख मैं यों ही हंस पड़ा।

 'और क्या गवांडीयों की मांग कर चरा रही हूं।’ कुछ काम से आए हो इधर?, उसने सवाल किया।

   'नहीं बस आप के पहाड़ों पर ठण्डी हवा खाने चला आया। मुझे रात बिताने के लिये एक कमरा किराये पर चाहिये। यहां से शहर कितनी दूर रह गया?, मैने उससे पूछा। पता नहीं क्यों मुझे अब नींद आने लगी थी। शायद मैं चलते-चलते थक गया था। मैं वहां पत्थरों पर नहीं सो सकता था।  

    'अभी चालिस मील है। जल्दी जाओ, यहां पांच बजते ही अंधेरा होने लगता है और खुंखार जंगली जानवर भी हैं यहां पर।’ 

‘ओह! जानवर भी हैं।’ मेरे मुहं से निकला और मैं मोटरसाइकिल स्टार्ट कर तेजी से चलने लगा। जैसे-जैसे मैं उपर चढ़ता गया खाईयां और भी गहरी होती गई। आखिरकार मैं शहर पहुंच ही गया। वहां पहुंचते-पहुंचते शाम हो गई। यह बस नाम का ही शहर था। यहां शहर जैसा कुछ था ही नही। यहां तो बस पहाड़ की ढलवां, समतल चोटी पर एक छोटी सी गली में आठ-दस दुकाने व आसपास चंद मकान ही थे। मुझे यह छोटा सा शांत पहाड़ी गांव दिखाई दे रहा था।    

  ‘क्या यहां का मौसम ठण्डा है?’ मेरी सोचें मुझ पर हावी हो रही थी। ‘हां ऐसा ही है।’ यहां ठण्ड वाकई बहुत अधिक है। मेरी आंखें बोझिल होने लगी। मैं सोना चाहता था।

     ‘लगता है ये ठण्डी हवाएं पहाड़ो से आ रही हैं जिनके बीच में एक नदी बह रही है। यमुना नदी.....कहां है नदी? नदी है या पहाड़? ये तो पहाड़ों की चोटियों पर ठण्ड होती है, इसलिये यहां ठण्ड है।’ कुछ समझ नही आ रहा। दृष्य कुछ गडमगड से होने लगे। फिर एक झटका सा लगा और मैं बुलेट मोटरसाइकिल लेकर बाजार नुमा एक मात्र गली से होता हुआ आगे बडऩे लगा।

    मेरी मोटरसाइकिल का हैंडल कुछ उंचा सा था जिसे पकड़ने में मुझे कुछ असुविधा सी हो रही थी। मैं सोच रहा था कि कोई होटल, लॉज दिख जाए। आखिर रात काटने का जुगाड़ तो करना ही है। मैं चलता हुआ गली के आखिर में आ गया मगर कहीं कोई आश्रय स्थल नही दिखाई दिया। आगे दुकानों से थोड़ी दूर खाई के किनारे पर स्लेट पत्थरों से बनी झोपड़ी में एक महिला का ढाबा दिखाई दे रहा था। उस महिला ने एक चोगेनुमा दुप्पटा सिर पर ओढ़ा हुआ था। उसने उस दुप्पटे के निचले छोर को कमरबंद जैसा बनाया हुआ था। 

   वह बीस-पच्चीस साल की भरे हुए बदन की सुंदर युवती दिखाई दे रही थी। आमतौर पर अधिकतर पहाड़ी स्त्रियां दुबली-पतली होती हैं मगर ये अपवाद थी। लगता था जैसे ढाबे पर इस्तेमाल होने वाले दूध की सारी मलाई ये ही खा जाती हो। मैं कुछ देर खड़ा होकर उस महिला के शरीर का अन्य महिलाओं के शरीरों के साथ तुलनात्मक अध्ययन करने लगा। वहां ढाबे को देखते ही अब मुझे भूख लगने लगी थी।

     ‘कब से मोटरसाइकिल चला रहा हूं मैं, रास्ते मैं कुछ भी नही खाया, यानी मुझे कुछ खाना चाहिये।’ ये सोचते ही तंदूर में भूने जा रहे गोश्त की खु्श्बू ने मेरी भूख बड़ा दी।

   'कुछ पीने के लिये भी मिलेगा यहां। आस-पास अंग्रेजी का ठेका है क्या?, मैं अपनी सामान्य आवाज में उस महिला से बोला मगर मुझे ऐसा लगा जैसे मैं बहुत उंची आवाज में बोला हूं। मेरी आवाज सुन वह महिला मेरी तरफ ऐसे घूंम गई जैसे वह मेरी आवाज की गुलाम हो। और फिर उसके सुंदर मुखड़े पर मुस्कान फैल गई।  

    'अंग्रेजी क्या यहां तो देशी का भी नही है साहेब। घर में माल्टे, जड़ी-बुटी से निकाली हुई कच्ची है। पीओगे तो सारी अंग्रेजी वालियों को भूल जाओगे।’ ढाबे वाली शुद्ध व्यवसायिक मुस्कान बिखेर मजाक करते बोली।

   ‘अच्छा ये बात है तो आज तुम्हारे माल्टे में भी देख लेते हैं कितना दम है, कितने की है?, मैं अपनी आवाज नियंत्रित करता हुआ हंस कर बोला और बाईक झोपड़ी के आगे खड़ी कर अंदर पड़े तख्त पर बैठ गया। 

   'अस्सी की है साहेब। पूरी पीओगे तो बेहोश हो जाओगे, इसलिये थोड़ी पीकर बाकी रख लेना।’

  'ठीक है दे दो। सलाह देने की जरूरत नही, मैं रखुं या फैंक दूं । रोटी की अच्छी प्रकार सिकाई करना।’ 

    'चावल भी हैं,दूं क्या?, वो बोली।

  'दे दो, चावल मुझे पसंद हैं।’ वहां मेरे पास दो स्थानीय व्यक्ति भी बैठे पी रहे थे। वे आपस में पहाड़ी भाषा में बतिया कर सिर हिला रहे थे जो मेरे पल्ले नही पड़ रही थी। एक तेज हवा का झोंका आया तो मैं सर्दी से कांपने लगा। ऐसा लगा जैसे हवा में उड़ती हुई कुछ कोहरे से की बूंदे मेरे चेहरे से टकराई हों।

   ‘ओह! मुझे मालूम नही था इस इलाके में इतनी ठण्ड पड़ती है, नहीं तो गर्म कपड़े जरूर लेकर आता।’ सोचते हुए ठण्ड भगानें के लिये मैने एक पटियाला पेग कच्ची शराब का पी लिया। ऐसा लगा जैसे मेरे हलक में आग की एक लकीर सी बन गई हो। मैने आंख बंद कर गले में झांका वहां वाकई आग जलती दिखाई दे रही थी। वह एक लाइन की तरह थी। 

    ‘ये क्या है अंकल जी। इसकी शराब से मेरे गले में आग लग गई है। मैं जल रहा हूं।’ मैं वहां बैठे पहाड़ियों से बोला। 

  यह जलती है तभी तो नशा होता है। गले में गिरेगी तो गले की नमी से आग पकड़ लेगी और इसकी भांप बनकर दिमाग में चढ़ जायेगी जिससे बहुत मजा आएगा। बस ये आप की अंग्रेजी से थोड़ी तेज है, इसे थोड़ी पीना। पिछले साल तेरी उम्र का एक लड़का पी कर वहां पीछे बाथरूम करने लगा तो खाई में लुढ़क गया।’ वह झोपड़ी के पीछे की तरफ ईशारा करता हुआ मुझ से हिंदी में बोला।

   'फिर क्या हुआ...बच तो गया न?, मैने झोपड़ी के पीछे देखा तो वहां खड्ड में अंधकार के अलावा कुछ दिखाई नही दे रहा था।

   'खड्ड में गिरकर भी कोई बचा है क्या? हमने दोड़ कर देखा तो धड़ सौ फुट उपर झाड़ी में लटका था और गरदन किसी उभरी हुई पैनी चट्टान से कटकर नीचे लुढ़क गई थी।’

  ‘ओह! ये तो बहुत बुरा हुआ। मुझे सोना है, यहां रात गुजारने के लिये कोई होटल, लॉज बना है क्या?, मैं उनसे अपने मतलब की बात बोला और वहां जाकर खाई में झांकने लगा जहां वो लड़का गिरा बता रहे थे। यहीं कहीं गिरा होगा। कुछ चित्र से साफ हुए तो एक लाल कमीज पहने लड़के का धड़ बहुत दूर नीचे बिजली की चमक के समय दिखाई देने लगा। मैं वापिस आकर उनके पास बैठ गया।

    कमरा तो यहां नही मिलेगा। यहां पर केवल एक धर्मशाला है, वो भी आजकल सरकारी कर्मचारियों की भरी पड़ी है। इन दिनों उसमें पुलिस के सिपाहियों की भरमार है।’ उनमें से एक पहाड़ी नशे में आंखे मिचमिचाते हुए मेरी तरफ ध्यान से देख कर बोला। 

  ‘इतनी पुलिस का यहां क्या काम? इन दस बीस घरों में लोग तो यहां थोड़े से ही रहते होंगे?’

  ‘यहां पर तेरी तरह घूमने आने वाले कई लोग लापता हो गए हैं जिनमे एक बड़े नेता का लड़का भी था। और तुझे पता है अगर मामला नेताओं का हो तो जांच करने सेना भी आ सकती है ये तो पुलिस है। बस उनकी तलाश चल रही है इसलिये पुलिस का जमावड़ा यहां है।’ दूसरा पहाड़ी बोला।

    अगर मैं नीचे जाता हूं तो मैदानों में जाते-जाते थक कर मेरा कचमुर निकल जायेगा। उपर से मुझे यहां गहरी खाइयों से भी डर लग रहा है। यहां रहने का कोई तो बंदोबस्त होगा।’ एक पैग और लेकर मैने बची हुई शराब की बोतल इस आस में उन दोनों को पकड़ा दी की शायद वो ठहरने का कुछ प्रबंध कर दें, मुझे वेसे भी वो शराब अच्छी नही लग रही थी। कुछ कसैला खट्टा सा मुंह का स्वाद हो गया था, ऐसे जैसे खमीरी आटे की गंध से होता है।

    'खाइयां तो हैं ही बच्चे। देख कर चलोगे तो उन से बच ही जाओगे पर यहां बैराघु भी उतरता है और काला मघ्घड़ भी अंधकार में चीरफाड़ कर देता है।’ पहला व्यक्ति बोतल मेरे हाथ से ले मुझे और भी अधिक डराता हुआ बोला।

   'मघ्घड़, बैराघु.. ये क्या बला है? ’ मैं आश्चर्य से बोला।

  'आपकी भाषा में भालू, तेंदुआ यार।’

  'भालू तेंदुए भी यहां रहते हैं?’

     'बहुत हैं यहां के जंगलों में, बच के रहना, पिछले वर्ष ही यहां तीन लोगों  को इन खुंखार जानवरों ने मार दिया।’   

  'ओए अमलियो...लगता है तुम्हारे सारे कांड पिछले ही वर्ष हुए हैं। कोई ठहरने का ह्ल बताने की बजाये डराते ही जा रहे हैं।’ मैं मन ही मन सोचते हुए उन दोनों की तरफ देखने लगा। मुझे भी शराब का अच्छा सरूर हो गया था। अब मुझे ठण्ड बिल्कुल भी नही लग रही थी। मैने ढाबे वाली की रोटी का बिल चुकता कर पांच सौ रूपये का नोट अतिरिक्त उसे दे दिया।

  'ये रूपये किस लिये साहेब।’ वह हैरान होते हुए मुझे देखने लगी।

  'ये किराया समझ कर रख ले। रात मुझे इस तख्त पर ही काटने दे, सुबह उठ कर मैं अपने घर चला जाऊंगा।’

   ‘हाय, हाय! क्या कह रहे हो साहेब। मेरा तो ये ही एक ठोर है और आप मेरे साथ सोएंगे क्या? मै अकेली विधवा औरत। यहां तो लोग लांछन लगाते देर नही करते। सुबह ही पंचायत कर मेरे साथ आप को भी जलील कर देंगे। आप ऐसा करो यहां से तीन मील दूर आगे रास्ते पर ही दया राम का घर है। उन्होने किराये के लिए एक छोटा हॉल बनाया हुआ है जिसमें आठ दस बैड डाल रखे हैं। पहले वो मुसाफिरों को सौ रूपया प्रति बैड का किराया लेकर एक रात के लिए ठहराते थे, अब का मुझे मालूम नही। उन बेचारों पर तो ऐसी गर्दिश बरपा हुई की कुलानाश हो गया। पिछले वर्ष एक बड़ी दुर्घटना हो गई जिसके बाद दया राम चल बसे। पत्नी बरसों पहले झुड़वा बच्चों को जन्म दे भगवान को प्यारी हो गई थी। अब तो बस उनकी एकमात्र बची हुई बेटी ही वहां रहती है। हो सकता है आपको वो बैड दे दे।’ ढाबे वाली एक कच्चे छोटे रास्ते की तरफ हाथ से इशारा करती हुई बोली। उसने मेरे पूछे बिना ही किसी दया राम की पूरी दुखभरी दास्तान सुना दी थी जबकि मुझे ऐसे किस्सों में कोई दिलचस्पी नहीं थी।   

   'ठीक है, आप का धन्यवाद। तीन मील तो मैं दस मिनट में पहुंच जाऊंगा। और अगर बैड नही मिला तो यहीं आपकी झोपड़ी के पास बैठ कर रात गुजार दूंगा।’ मैने अपनी मोटरसाइकिल में किक लगाई और लाईट जला कर उसके बताए कच्चे रास्ते पर चल दिया। 

   ‘अच्छा हुआ मैं पिछले वर्ष यहां नही आया, नही तो कोई दुर्घटना हो जाती। जरूर यहां पर पिछले वर्ष साढ़सति का प्रकोप रहा होगा।’ रात के आठ बज चुके थे। बाईक का चौथा गियर पड़ते ही मुझे जबरदस्त ठण्ड लगने लगी। 'बड़ा पहाड़ दर्शक बनता है, स्वेटर शाल क्यों नही लेकर चला।’ मुझे अपने पर ही गुस्सा आ रहा था। यहां रास्ता क्या बस तीन चार फुट चौड़ी पगडण्डी सी थी जिस पर मेरी मोटरसाइकिल चांदनी रात का सीना चीरते हुए चल रही थी। यहां पहाड़ नंगे थे जिन पर कहीं-कहीं पेड़-पौधे काले सफेद सायों के रूप में नजर आ रहा थे। चट्टानों पर जिस तरफ चांद की चांदनी पड़ रही थी पहाड़ सफेद से हो गए थे और जिस तरफ परछाई थी उधर स्याह काले नजर आ रहे थे। ऐसा लगता था जैसे यहां स्वेत-श्याम कला कृतियां सजा कर रखी गई हों। यहां चारों तरफ छोटे-बड़े पत्थर और चटटानों का समराज्य था।

    दो मील चलने के बाद मैं बाईक धीमी कर रास्ते के बाईं तरफ देखते हुए चलने लगा। सोचा कहीं दया राम का घर पीछे ना छूट जाए। थोड़ा आगे गया तो अचानक एक लड़की खाई से निकल कर रास्ते के मध्य आकर खड़ी हो गई। वो कैसे कहां से आई मैं देख ही नही सका। वहां पगडण्डी के किनारे खड़े बड़े से पत्थर के पीछे से एक साया सा निकला और वह मेरी मोटरसाइकिल के आगे आकर खड़ी हो गई। ऐसे जैसे कोई भटकती हुई रूह हो। मगर वह कोई रूह नही बल्की एक जीती जागती पहाड़ी लड़की थी।

   'यहां औरतें खाईयों में बस्ती हैं क्या जो अचानक निकल कर बीच रास्ते पर खड़ी हो जाती हैं? ’ मैने बड़बड़ाते हुए ब्रेक लगाए तो वह मेरी बाइक की सफेद रोशनी में नहा गई। वह सत्तरह-अठारह वर्ष की बहुत सुंदर पतली सी लड़की थी। वह बकरी का छोटा सा मैंमना गोद में उठाए उसके सिर पर हाथ फिराती हुई मेरी तरफ देख रही थी। उसकी आंखों में शरारत और होठों पर मुस्कान थी।

   'रात के आठ बजे तक भी पहाड़ी लड़कियां बकरियां चराती हैं या मरने का इरादा कर के घर से निकली हो? ’ रात को रूकने का कोई ठिकाना न मिलने के चलते मेरा मूड खराब था, आंखें बोझिल हो रही थी। मै तो बस कहीं भी सोना चाहता था। दिल कर रहा था कि यहीं किसी चटटान में बनी गुफा के अंदर घुस कर सो जाऊं।

    मेरे तलख लहजे में बात करने पर भी उसकी मुस्कान में कोई अंतर नही आया। 'बाबू साहेब, आज मेरी बकरी का यह मैमना खो गया था। बड़ी मुश्किल से मिला है। देखो-देखो कितना शरारती है।’ मेरी बात अनसुनी कर वह मेरी तरफ अपनी शोख हंसी फैंकती हुई बोली। उसकी आवाज में बला की कशिश थी। उसमें इतनी मिठास थी की मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे कानों में रस गुल गया हो।

   ‘मेरा नाम बाबू साहेब नही श्याम है।’ मैं उसे अपना बचपन का नाम बताते हुए बोला। अब उस चुलबुली बाला को देख न जाने क्यों मुझे भी हंसी आ गई थी। मैं मोटरसाइकिल का इंजिन बंद कर उसके नजदीक चला आया। मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मैं खुद नही आया बल्कि उसने मुझे अपनी तरफ खींच लिया हो। मैने लाईट बंद कर दी थी मगर चांद की चांदनी में उसके बदन का पोर-पोर मुझे सपष्ट दिखाई दे रहा था।        

    'और मेरा नाम कामनी ठाकुर है श्याम, मुझे मेरे घर तक छोड़ दो।’ वह ऐसे बोली जैसे मुझे वर्षों से जानती हो। तभी एक कदम आगे बड़ा वह मेरे और अधिक नजदीक आ गई। इतनी नजदीक की मेरी सांसो से उसकी सांसे टकराने लगी। उसकी अति सुंदर काया, मध्यम ठोस उभार वहां पहाड़ों की चोटियों को चुनोती देते प्रतीत हो रहे थे। उसकी कमर किसी बल खाती नदी की तरह वृहद कटी प्रदेश में प्रवेश कर रही थी। होठ थे कि ऐसे मधुशाला के प्यालों की तरह लग रहे थे जिनमें मय ही मय भरी थी। उसके गाल पर एक काला तिल था जो उसकी सुंदरता में चार चांद लगा रहा था। मुझे वह स्वर्ग से पृथ्वी लोक पर आई किसी अप्सरा की तरह दिखाई दे रही थी। वह इतनी सुंदर थी की उसके हुश्न को देख स्वर्ग की परियां मेनका, उर्वशी भी इर्शा करने लगे।

    मैं तो क्या उसका अप्सराओं जैसा रूप लावण्य ऋषी मुनियों तक का ईमान डिगाने के लिए काफी था। उसके बदन से मदहोश करने वाली सुगंध निकल कर मेरे रोम-रोम में समाती जा रही थी। उसमें कुछ ऐसा था जो मुझे उसकी तरफ खींच रहा था। दिल था की बहुत बेकरार हो रहा था। वह मेरे काबू में नहीं था। मैं तो बस अब उसके गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होठों का रस पीना चाहता था। मैं उसे अपने बहुपाश में भरकर उसका अंग-अंग चूमना चाहता था। मेरा अब खुद पर ही नियंत्रण नही रहा था। मै उसे सम्पूर्ण रूप से पाना चाहता था।

   'कामनी...इस विराने में कहां भटक रही हो तुम मेरी हसीन परी, बाईक पर बैठो तुम्हे तुम्हारे घर पहुंचा देता हूं।’ उसके कंधे पर हाथ रख बोलते हुए मेरी जबान लड़खड़ा गई। उसका गजब का हुश्न देख मेरे अंदर एक वासना का तूफान सा उठ खड़ा हुआ। हुश्र और इश्क एक आग का दरिया है, इस अनजान इलाके में कहीं छित्तर परेड न हो जाए, मैं अपने आपको बहकने से रोकने के लिये जी जान से कोशिस करने लगा।

    ‘ये हसीन वादियां, ये शमां, इस चांदनी रात में बहती समीर,पेड़ो की सरसराती टहनियों से छनकर आती हुई प्रकाश किरणे। श्याम... मुझे तुमसे प्यार हो गया है। मैं भी तुम्हारी आंखों में अपने लिये प्यार के सागर छलकते हुए देख रही हूं। तुम्हारा रोम-रोम मुझे पाने को तड़प रहा है, लगता है तुम्हे मुझ से कुछ चाहिये। ऐसा कुछ जिससे तुम्हारी आत्मा तृप्त हो सके। तुम्हारे सीने में एक तूफान की आमद बन रही है। इसे रोको मत, प्रचंड वेग से बाहर आने दो। यह लावा अगर रूक गया तो तुम्हारा शरीर जल कर खाक हो जायेगा। अब ध्यान से सुनों, इस बड़े पत्थर से पचास फुट नीचे एक गुफा है। चलो उसमें कुछ देर हम जी भरकर प्यार कर लें। ऐसा प्यार जो किसी ने अब तक न किया हो। तुम मेरे साथ जबरदस्ती बलात्कार करना, जब मैं चित्कार करूंगी तो दखना तुम्हे कितना मजा आएगा। जल्दी चलो मुझ से ब्रदास्त नही हो रहा, फिर हम घर चले जाएंगे।’ कामनी ने मैमने को नीचे छोड़ा और मेरे गले में अपनी बाहों का हार पहना दिया। 

   कामनी ने अपनी दोनों हथेलियों पर मेंहदी रचाई हुई थी। उसकी सागर से भी गहरी आंखों में इस समय बला की चमक थी मगर उसकी बात सुन मुझे एक झटका सा लगा। ऐसे जैसे अचानक मैं होश में आ गया हूं। अब मेरा सारा प्यार का बुखार एक झटके से उतर गया था। मैं एकाएक उस लड़की से कुछ डर सा गया।    

    'चीखें, बलात्कार... पागल है क्या? हट पीछे, मैं ऐसा लड़का नहीं हूं।’ कहकर मैने उसकी बाहों को झटके से अपने शरीर से अलग कर दिया। ‘आखिर ये है क्या बला? अभी पांच मिनट पहले खाई की तरफ से आई, दो बातें की और प्यार हो गया। जरूर ये कोई सस्ती कॉलगर्ल है। नीचे मैदानों के अमीरजादों के लोफर लड़के यहां नशा कर, नोट दे इस पर टूट पड़ते होंगे तो यह चिल्लाती होगी, लगता है इसने मुझे भी उन्ही जैसा समझ लिया। और समझे भी क्यों न, मैं कौन सा ठीक ठाक था। शराब पीकर मोटरसाइकिल चला रहा था तो इसका ऐसा समझना स्वभाविक ही था। 

    उसके हाथों की मेंहदी देख कर मुझे और भी यकीन हो गया। नीचे मैदानों में  मेंहदी रचाये सड़कों के किनारे ऐसी कॉलगर्ल खड़ी हो मोटे ग्राहक का इंतजार करती रहती हैं, फिर किसी अकेले कार वाले को हाथ दे रेट तय कर कार में घुस जाती हैं। अब वह मुझे बिल्कुल भी सुंदर नही लग रही थी। मुझे ऐसी लड़कियों से सख्त नफरत है क्योंकि कई लोग इनके शिकार हो एड्स जैसी भयानक बिमारी के शिकंजे में फंस असमय मौत का ग्रास बन जाते हैं। 

   मैं उसकी तरफ घृणा से देखते हुए बिना कुछ बोले अपनी बाईक की तरफ कदम बड़ाने लगा तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया। 

    'नहीं...नहीं, मैं ऐसी नही हूं जैसा तुम सोच रहे हो।’ वह चित्कार कर उठी, मैं तो बस ये देख रही थी कि तुम भी उन लफंगों के ही जैसे हो या अलग।’

   मैं हैरान था, जो सोच रहा था वह मेरे मन की भाषा किस प्रकार समझ रही थी। अब उसके चेहरे पर असीम वेदना, दर्द के निशान उभर आए। वासना का जलजला दूर तलक कहीं नजर नही आ रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी अबोध बालिका के सामने खड़ा हूं। एक ऐसी नटखट अबोध बालिका जो गंगा जल की तरह पवित्र है। मस्त पवन के झोंकों की तरह शीतल है। 

    'कैसी नही हो तुम? मैने तो कुछ कहा ही नही। चलो तुम्हे तुम्हारे घर छोड़ देता हूं। मुझे भी दया राम जी के घर जाना है। कहीं उनकी बेटी सो न जाए। मुझे रात गुजारने के लिये एक बैड किराये पर चाहिये। नहीं तो तुम्हे घर छोड़ मुझे सचमुच तुम्हारी बताई गुफा में ही रात गुजानी पड़ेगी। उसका घर मालूम है तुझे? क्या नाम  बताया था अपना....हां कामनी।’ मैं उसका नाम याद करता हुआ बोला।

   'मैं दया राम की ही बेटी हूं। तुम मेरे बारे में, मेरे चरित्र के बारे में गलत सोच रहे थे। मैं तो तुम्हारी परिक्षा लेकर देख रही थी। मैं अब तक कुवांरी हूं, ये देखो तुम जैसे मैदान से आये लोगों ने मेरा क्या हाल किया है।’ अचानक वह रोते हुए एक झटके से अपनी कुर्ती उतार कर नंगी हो गई।  

    'पागल हो क्या?’ क्रोध की एक ज्वाला सी मेरे सीने में धधक उठी। मैने उसके गाल पर चांटा मारने के लिये हाथ उठाया मगर उसने घूम कर पीठ मेरी तरफ कर दी। उसक पीठ देख मेरी चींख निकल गई। पूरी कमर बुरी तरह क्षतिग्रस्त थी। जगह-जगह गहरे घाव थे। पीछे से सर भी फूटा हुआ था। कमर की तो कई जगह पसलियां साफ दिखाई दे रही थी। उसकी कमर की हड्डियों पर कहीं-कहीं तो त्वचा, मांस का नामों-निशान तक नही था।

    'देखा तुम मैदानों के लोग कितने जालिम हो।’ उसने चेहरा मेरी तरफ करते हुए कहा। उस दिन भी तुम्हारी तरह शराब पीकर बुलेट पर तीन लड़के आए थे। मेरा मैमना खो गया था। मैं उसे खोज ही रही थी कि उन्होने मुझे यहीं घेर लिया। मैं चींख रही थी, वो जोर-जोर से हंसते हुए बलात् मुझ से अपनी हवस मिटाना चाहते थे मगर मैं अपनी इज्जत बचाने के लिये खड्ड में उतर गई। वहां नीचे गहरी खाई में रास्ता थोड़े ही है।’ कामनी ने बड़े पत्थर की तरफ उंगली से इशारा करते हुए मुझ से कहा।  

   ‘ओह! खाई में रास्ता नही है। वहां नीचे जाता ही कौन होगा, कामनी अच्छे बुरे लोग हर जगह बसते हैं। वो पहाड़ों पर भी हो सकते हैं और मैदानों में भी मगर मैं ऐसा नही हूं। मैं किसी के साथ जबरदस्ती करने की तो स्वप्र में भी नही सोच सकता। तेरी सुंदर काया देख थोड़ा बहक जरूर गया था। प्लीज मुझे माफ कर दो। लगता है पैसे के अभाव में तुम अपना सही इलाज नही करवा पा रही हो। मैं जानता हूं इधर गरीबी अधिक है मगर मैं तेरा इलाज कराऊंगा। चाहे मेरा जितना मर्जी पैसा खर्च हो जाए। देखना तेरी कमर दस-बारह दिन में ही ठीक हो जाएगी।’ मैने कुर्ती उसके हाथ से ले उसे उसके गले में पहनाते हुए कहा।

   'अब मेरा ईलाज तुम्हारे पास नही है श्याम, काश तुम तीन-चार महीने पहले आ कर मुझे यहां से ले जाते। मैं तो कईं जन्मो से यहां ऐसे परदेशी का इंतजार कर रही हूं जो मुझे रानी बना कर रखे। हर जन्म में बस तड़पना मेरे नशीब में लिखा है।‘कामनी किसी फिल्मी हिरोईन की तरह डायलाग बोल कर जोर से हंस दी।

   'कितने रंग बदलती है ये लड़की अभी रो रही थी और अभी हंसने लगी है।’ मैं हैरानी से मुहं खोले उसकी तरफ देख रहा था। कामनी बुरी तरह घायल होने के बावजूद फिर रोमांटिक हो रही थी।

     'चल तुझे अपने घर पर सोने के लिये बिस्तर दिलवाती हूं।’ वह मेरे बैठने से पहले ही टांगे दोनों तरफ कर इस प्रकार मस्ती से मोटरसाइकिल पर बैठ गई जैसे बिल्कुल ठीक ठाक स्वस्थ हो। 

   'तेरी बकरी का मैमना अब दिखाई नही दे रहा, कहां चला गया?’ मैने मोटरसाइकिल स्टार्ट करते हुए उससे पूछा।

   'चला गया होगा कहीं, मुझे उससे क्या। उस हरामी की वजह से ही सारा फसाद हुआ है वरना मेरे भी हाथ में तेरे जैसे किसी परदेशी के नाम की मैंहदी रच जाती।’ कामनी ने मुझे पीछे से बाजुओं मे झकड़ते हुए अपना मुंह मेरी पीठ पर टिका दिया। मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मैं किसी भारी शिंकजे में झकड़ा गया हूं। उसके वजूद का इतना वजन मेरी पीठ पर पड़ रहा था जैसे वो कई टन भारी हो।

   'ये दुबली पतली लड़की इतनी भारी कैसे है।’ मोटरसाइकिल चलाता हुआ मैं सोच ही रहा था कि आगे सड़क के किनारे तीन-चार कमरों का एक घर दिखाई दिया। उस घर में से केवल एक कमरे से ही प्रकाश बाहर आ रहा था बाकि पूरा घर अंधकार में डूबा था।

    'बस यहीं रोक दे, आ गया हमारा घर।’ मेरे कान में कामनी ने आहिस्ता से सरगोशी की तो मेरी हंसी छूट पड़ी। वहां कमरे और उनके बराबर में एक हॉल बना हुआ था जिस पर ताला लटका था। अब तो दया राम की लड़की से जान पहचान हो गई, सोने का प्रबंध हो ही जाएगा।’ सोचते हुए मैने मोटरसाइकिल घर के आगे बंद कर दी।

  'आज कोई मुसाफिर नही ठहरा क्या तुम्हारे हॉल में?’ मैने अपने पीछे बैठी कामनी की तरफ देख कर कहा मगर वह सीट से गायब हो चुकी थी।  

 'अंदर चली गई होगी। चोंकाना तो इसकी आदत है। रास्ते में मेरी मोटरसाइकिल के आगे भी तो इस प्रकार अचानक आ गई थी जैसे कोई भटकती हुई प्रेत आत्मा हो...प्रेत आत्मा।’ भटकती हुई रूहों का ख्याल आते ही मेरे शरीर में एक भय की लहर दोड़ गई।

    मैं अपने सर को झटका दे विचारों से बाहर निकल कर उस कमरे की खिड़की से अंदर झांकने लगा जिससे प्रकाश बाहर आ रहा था। कामनी वहीं सामने बैठी थी। वह इत्मीनान से कुर्सी पर बैठ कर एक उपन्यास पढऩे में मग्र थी। वह मेरा कोई ठोर ठिकाना किये बगैर ऐसे मस्ती में बैठ कर पढ़ रही थी जैसे मुझे दो मिनट में ही भूल गई हो। अब मुझे उस पर गुस्सा आने लगा था।    

     'वैसे तुम अपने आप को समझती क्या हो, तुमसे थोड़ी जान पहचान हो गई तो क्या तुम समझती हो मैं बिना किराया चुकाए यहां से चला जाऊंगा, या मेरी मजबूरी का फायदा उठा मनमर्जी का किराया लेना चाहती हो, तो बोल कितना लेना है? जो बनता है उससे भी ज्यादा देकर जाऊंगा। अगर हर रोज के दो सौ लेते हो तो मैं पांच सौ दूंगा पर इतनी तमीज तो तुझे होनी चाहिये की घर आए सैलानी का कोई ठोर ठिकाना कर आराम से सारी रात नॉवल पढ़ती। अभी तो बहुत प्यार जता रही थी। बड़ी चिपक कर मेरे पीछे बैठी थी।’ मैं एक झटके से कमरे में आ कामनी पर बरस पड़ा तो वह खड़ी हो कर मुह खोले आश्चर्य से मेरी तरफ इस प्रकार देखने लगी जैसे मैं कोई पागल हूं। 

   'कामनी...वह तो साहेब तीन महीने पहले खड्ड में गिरकर मर गई थी। हमारी बकरी का एक मैमना पीछे रह गया था। बस उसी को खोजने चली गई। उसकी तो लाश भी हमें नही मिली। क्रियाक्रम कर देते तो उसकी आत्मा को शांति मिल जाती। उस रात तीन लड़के आकर हमारे लॉज में ठहरे थे, उन्होने ही उसे खाई में गिरते देखा था। मैं उसकी झुड़वां बहन पार्वती हूं। आप कौन हैं...कहां से आए हैं...कामनी को कैसे जानते हैं...वो आप को कहां मिल गई?’ कामनी की बहन पार्वती ने सवालों की झड़ी लगा दी।

   'वाकई यह कामनी नही है। कपड़े भी दूसरे रंग के पहने हैं। इतनी जल्दी ये कपड़े चैंज नही कर सकती थी और मुझे पहचानने से इन्कार ही क्यों करती। तो क्या वह कामनी की प्रेत आत्मा थी।’ ये सोच कर डर के मारे अब मुझे पसीना आ रहा था। 'क्या होलनाक मंजर था। अगर में वासना के वशीभूत हो खाई में उसके साथ चल देता तो अब तक जिंदा नही बचता।’ पार्वती के सवालों का क्या जवाब देता, मेरा अब सिर चकरा रहा था।

   'बैठो साहेब, आप से अधिक किराया मैं क्यों लूंगी। जो सब मुसाफिर देते हैं वो ही लगेगा। ये तो हमारा सोभाग्य है कि आप बैड किराये पर लेने आ गए। यहां पिछले तीन महीने से एक भी सैलानी ठहरने नही आया इसलिये मैने हॉल को ताला लगा दिया है। पहले यहां आप जैसे बहुत से लड़के आते थे। गर्मियों में बहुत कमाई होती थी पर जब से ये अफवाह फैली की इधर आने वाले सैलानी कभी लौट कर वापिस नही जाते तो लोग आने बंद हो गए।’

   'जो तीन लड़के कामनी के मरने की खबर लेकर आए थे वो बुलेट मोटरसाइकल पर थे क्या?’ मैने पार्वती से पूछा।

  'हां, वह आश्चर्य से बोली। क्या आप उन्हे जानते हैं। एक महीना पहले कुछ पुलिस वाले उनके बारे में पूछताछ करने यहां आए थे। वो कह रहे थे की जो लड़के हमारे लॉज में ठहरने के लिये आए थे वो लौट कर वापिस घर नही गए।’

    'कुत्ते की मौत मारा होगा कामनी ने उन्हे, वो हरामजादे इसी काबिल थे। तेरी बहन खड्ड में नही गिरी, बल्कि उन्होने उसे गिरने पर मजबूर किया।’ जब मैने कामनी के साथ हुई अपनी सारी बातचीत उसे बताई तो पार्वती सुन कर रोने लगी।

   'मेरे तो कभी सपने में भी नही आई कर्मजली। आप से मिलकर पूरी दिल की भड़ास निकाल कर चली गई। आप जरूर कोई नेक ईन्सान हो जो मेरी बहन तुम्हे मरकर भी पसंद कर बैठी।’

   'नेक कहां, मैं भी शराबी, कबाबी बंदा हूं। मेरा तो लगा दिया था उसने नम्बर पर अभी शायद मेरी किस्मत का सितारा बुलंद था, अभी काल देवता नही आए।’ मैं मन ही मन अपने से ही बोला और पार्वती की बात पर प्रत्यक्ष में हंस भर दिया।

    'साहेब आप के लिए चाय बना दूं। आप साथ वाले कमरे में ही सो जाना, हॉल की तो हमने महीनों से सफाई नही की है।’

   'ठीक है सो जाऊंगा पार्वती, मेरा नाम श्याम है, एक कप चाय पिला ही दो तो बड़ी मेहरबानी होगी।’ शराब का नशा तो पहले ही कामनी ने उतार दिया था। अब वाकई मेरी चाय पीने की ईच्छा हो रही थी। पार्वती ने बराबर का कमरा खोल कर लाईट जला दी। 

   मैं भी सोने के लिये उसके पीछे चला आया। वहां बैड पर लेडिज कपड़े बिखरे पड़े थे। पीछे एक बड़ी फोटो टंगी थी जिसमें कामनी और पार्वती पहाड़ी पोशाक पहने मुस्करा रही थी। 

    'इस बैड पर लेट जाना, मैं अभी आप के लिए चाय बना कर लाती हूं।’पार्वती बैड से कपड़े उठाती हुई बोली।

    कुछ देर बाद पार्वती चाय देकर चली गई। मैने उठकर अंदर से दरवाजा और खिड़कियां अच्छी प्रकार बंद कर ली। मुझे डर था की कहीं कामनी फिर न आ जाए। मैं वहां बिस्तरे में लेट गया और कुछ ही देर में मैं सपनों के आगोश में चला गया। मुझे दिखाई दे रहा था जैसे मैं पहाड़ों के बीच में आवारा गर्दी करता फिर रहा हूं। कभी दोड़-दौड़ कर पहाड़ पर चढ़ने लगता, कभी नीचे खाई की तरफ बेतहाशा भागने लगता। अब वहां पर धीरे-धीर आकाश से अंधेरा छंट रहा था, सुबह हो रही थी। फिर सुबह जब पहाड़ी कौवों की कांव-कांव मेरे कानों मे पड़ी तो आंख खुल गई। दरवाजा खोल कर बाहर देखा तो पार्वती चाय लेकर लेकर खड़ी थी।

   'रात आपको कोई परेशानी तो नही हुई।’ वह अंदर पड़ी मेज पर चाय रख शालीनता से बोली।

  'परेशानी क्या होनी थी। बस रात भर अच्छी प्रकार से नींद नही आई। हर समय ये डर लगा रहा की कहीं आप की बहन न आ जाए।’ मैं चाय उठा, बैड पर बैठ हंस कर बोला।

  'वो तो मामूली काकरोच से भी डरने वाली लड़की थी। आप को तो उसने कोई नुकसान नही पहुंचाया फिर उससे क्यों डर रहे हो?’

  'पहुंचाया तो नही, पर है तो भटकती हुई आत्मा। वो मुझे एक बड़े पत्थर के पास से गुफा में ले जाना चाहती थी। अगर आप उचित समझें तो हम चलकर देखें की वहां आखिर है क्या?’ मैं चाय पीते हुए बोला।

   'जरूर जाऊंगी। हो सकता है हमें वहां कामनी की लाश मिल जाए। उसका विद्यी-विधान से अंतिम सस्कार नही हुआ, तभी तो वह भटक रही है। आप स्नान कर लो तब तक मैं आप के लिये नास्ता बना देती हूं।’ यह कह पार्वती कप उठा मेरे कमरे चली गई। शक्ल बेशक इन दोनों बहनों की मिलती थी पर व्यवहार में जमीन-आसमान का अंतर था। कामनी जहां बहुत चंचल थी तो यह संजीदा रहती थी।

      मैं नहाने के लिये बाथरूम में घुस गया। यह बहुत ही तंग जगह थी। पीछे की तरफ छोटा सा झरोखा बना हुआ था जो नीचे गहरी खाई की तरफ खुलता था। खाई से आगे दो पहाड़ों के बीच सूरज का गोला बहुत बड़ा दिखाई दे रहा था। ऐसा लगता था जैसे कोई बहुत विशाल लाल-लाल टमाटर किसी दो पहाड़ों के मध्य फंसा दिया हो। उन दो पहाड़ो के आगे भी एक नोकदार टिल्ला सा बना था जिसका उपरी नोकदार छोर सूरज के निचली तरफ लगा हुआ था। मेरी तरफ होने के कारण उस पर बड़े-बड़े पेड़ उगे दिखाई दे रहे थे। यह टिल्ला सूरज रूपी टमाटर की हरी डण्डी बनी हुई थी।

    ‘वाह क्या खूबसूरत कलाकृति बनी हुई है।’ सोचते हुए मैं बहुत दिलचस्पी से नहाते हुए उसे देख रहा था। नहाने के बाद मैने थोड़ा सा नास्ता किया और पार्वती को मोटरसाइकिल पर बिठा वहीं ले आया जहां रात कामनी मिली थी। वहां एक काले रंग का मुझ से भी बड़ा पत्थर खाई की तरफ रास्ते की साईड में गड़ा था।

    'ये था वो पत्थर जिसके पास से कामनी मुझे गुफा में ले जाना चाहती थी। इसका मतलब नीचे कोई गुफा है।’ मैने पार्वती से कहते हुए नीचे खाई में झांका पर वह इतनी गहरी थी कि नीचे अंधकार और बादलों के अतिरिक्त कुछ दिखाई नही दे रहा था। बादल तो यहां ऐसे चक्कर काटते रहते थे जैसे आकाश से उतर कर पहाड़ों की आगोश में पनाह ले ली हो।

   'इसे तो हम मौत का खड्ड कहते हैं। चलो कुछ नीचे चल कर देखें।’ पार्वती कहती हुई पत्थर की दाई और से खाई में उतरने लगी। वहां कोई पगडण्डी नही थी। हम चट्टानों में उगे झाड़-झखार, नुकीले पत्थरों को पकड़ कर नीचे उतर रहे थे। लगभग तीस-चालिस फुट नीचे जाने पर मुझे ऐसी बदबू आने लगी जैसे कहीं कोई पशु मरा पड़ा हो।

   'बड़ी बदबू है यहां तो।’ पार्वती अपने दुप्पटे को मुहं पर लपेटते हुए बोली। मैं खाईयों में उतरने का अभ्यस्त नही था इसलिए बड़ी मुश्किल से उसके पीछे पीछे चल रहा था। हम कुछ और नीचे गए तो पार्वती वहां दाई तरफ एक चट्टान के पीछे देखकर चींख पड़ी। 

   'क्या है उधर?’ मैने चट्टान के पीछे देखा तो मेरे होश उड़ गए। वह एक गुफानुमा बहुत बड़ी चट्टान थी जो किसी परछती की तरह उभरी हुई थी। उसके नीचे फर्शनुमा एक बड़े समतल पत्थर पर लगभग एक दर्जन युवाओं के क्षत-विक्षत शव पड़े थे। चार-पांच मोटरसाइकिलों के अंजर-पंजर भी वहां इधर-उधर बिखरे हुए थे। उनमें दो बुलेट भी थी। मैने उपर देखा तो ऐसा मालूम पड़ा जैसे सड़क पर स्थित बड़े पत्थर के बाई और से ये नीचे आ गिरे। उस तरफ सीदी खड़ी चट्टान थी।  

     'वो पड़ी है मेरी दीदी की लाश।’ पार्वती कामनी की लाश देख जोर-जोर से रोने लगी। कामनी की लाश पीठ के बल हमारी साइड में ही हमसे नीचे पड़ी थी। उसकी कमर पर गहरे घाव थे जिसमें उसकी हड्डियों का पिंजर सपष्ट दिख रहा था। ऐसा लगता लगता था जैसे वह इस रास्ते से ही नीचे भागी होगी जिस से हम नीचे उतरे थे। रात होने के कारण और उन लड़कों से डर की वजह से शायद संतुलन नही बना सकी और पीठ के बल नीचे फिसलती हुई चली गई। ठण्डा इलाका होने के कारण कामनी का शव तीन महीने बाद भी अच्छी हालत में था।

   'हिम्मत से काम लो पार्वती। रोने से अब कुछ नही होगा। यह बहुत गंभीर मामला है। अपने आस-पड़ोस को खबर कर इस हादसे की जानकारी शहर में पुलिस को दे दो।’ मैं उसे सात्वना दे रहा था मगर मेरे भी कामनी की लाश देख कर आंसू निकल आए थे। 

   'यहां हमारा अकेला घर है, आस पड़ोस में कोई भी तो नही है। मेरे सब अपने  मुझे छोड़ कर भगवान के पास चले गए।’ वह चुप होने की बजाए और जोर से रोने लगी।     

   मेरी समझ नही आ रहा था की क्या करूं। पार्वती को कैसे चुप कराऊं। ऐसी स्थिति मेरी जिंदगी में पहली बार आई थी। बेशक उसके साथ मेरा कोई रिस्ता नही था पर किसी को विपत्ति के समय अकेले छोड़ कर जाना मेरे उसूलों के बिल्कुल खिलाफ था। जिनके साथ मैं थोड़ा सा भी समय गुजारता हूं, बस उन्ही का हो जाता हूं, वे मुझे अपने दिखाई देने लगते हैं। 

   'पुलिस को तो खबर करनी ही होगी। मैं तेरे साथ चलता हूं, आ उपर चलते हैं।’ ये कहते हुए मै पार्वती का हाथ पकड़ उपर सड़क पर ले जाने लगा तो वह हाथ छुड़ा चुप होते हुए बोली- 'आप यहां उपर चढ़ते समय फिसल कर गिर जाएंगे पहले आप चलो मैं आपके पीछे चलती हूं। वह चुप हो कर उपर चढऩे लगी तो मैने राहत की सांस ली।

    वह ठीक कह रही थी। पहाड़ों पर नीचे उतरना आसान है मगर उपर चढऩे में भारी परेशानी होती है। उपर सड़क तक चढ़ते समय दो बार पार्वती ने मुझे नीचे गिरने से बचाया। वह पहाड़ों में चढऩे उतरने में पूरी अभ्यस्त थी जबकि मैं अनाड़ी था। सड़क तक आते आते मेरी सांसे धोंकनी की तरह चलने लगी थी। उपर सड़क पर आकर मैने पार्वती को बाईक पर बैठाया और शहर जाकर थाने में एस.एच.ओ. को पूरे हादसे की सूचना दे दी। मैने उन्हे बताया की मैं यहां टूर पर आया हूं और पार्वती के घर पर पेईंग गैस्ट के रूप में ठहरा हुआ हूं। आज सुबह जब मैं सड़क पर सैर कर रहा था तो मोड़ पर पैशाब करने खाई में थोड़ा नीचे उतर गया। वहां खाई के अंदर से बदबू आ रही थी। मैने नीचे जाकर देखा तो वहां लाशें पड़ी थी। मैने पार्वती को सारी स्थिती से अवगत कराया तो मेरे साथ इसने भी खड्ड में उतर कर देखा। वहां इसकी बहन कामनी की भी लाश पड़ी है। वह तीन महीने पहले लापता हो गई थी।

   कामनी से मिलने की पूरी बात को मैने पुलिस से छुपा कर रखा। और उन्हे बताता भी क्या। आज के जमाने में पुलिस कौन सा मेरी उससे मुलाकात की बात कबूल कर लेती। वो उल्टे मुझे ही शक की नजरों से देखते और सोचते की जरूर इस हादसे में इसका कोई हाथ होगा।  

    थानेदार मेरी बात सुन सकते में आ गया। वह बोला- 'यहां इस इलाके में दर्जनों युवक अपनी बाईकों सहित लापता हो चुके हैं। पता नही उन्हे जमीन खा गई या आसमान निगल गया। चलो चलकर देखते हैं। हो सकता है वो उन्ही लापता युवकों की लाशें हों। कर्मवीर फोरन जिप्सी निकालो।’ एस.एच.ओ. ने वहां खड़े  ए.एस.आई से बोलते हुए मेज पर रखी अपनी कैप उठाई और खड़ा हो गया।

    पुलिस वाले जिप्सी में बैठकर फोरन हमारे साथ चलने लगे। मैं पार्वती को बाईक पर बैठा उनसे आगे चलता हुआ उन्हे घटना स्थल पर ले आया। पार्वती को मैने सड़क पर ही खड़ा रहने को कहा और खुद एस.एच.ओ. और दो सिपाहियों को नीचे खाई में उतर कर लाशे दिखाई।  

  'ओह। ये तो वो ही लापता युवक हैं। जरूर ये उस पत्थर से सीदे नीचे आ गिरे हैं कर्मवीर।’ थानेदार ए.एस.आई से बोला। 

   'जी जनाब, मुझे तो लगता है अचानक मोड़ पर बड़ा पत्थर होने के चलते ये लड़के दिशाभ्रम हो नीचे गिर गए। इन्हे इस खाई से निकालने के लिए क्रेन मंगवानी पड़ेगी।’

  'हां, वो तो मंगानी ही पड़ेगी। मोटर साईकिलें भी निकलवानी हैं। चलो उपर चलकर प्रबंध करते हैं।’ थानेदार बोला। 

   हम लोग उपर सड़क पर आ गए। थानेदार ने मुझसे थाने में ही पूछताछ कर ली थी। उसके बाद जैसे इस मामले में मेरा रोल ही खत्म हो गया था मगर मैं पार्वती को इस पूरे झमेले से निकाल कर जाना चाहता था। आखिर उसकी बहन की लाश भी नीचे थी। वह पूरा दिन मेरे लिए टैशन भरा रहा। पुलिस द्वारा क्रेन मंगाई गई, फिर हर एक लाश को उपर निकाला गया। वहां से सभी लाशें पोस्टमार्टम के लिये शहर के सरकारी हस्पताल भेज दी गई।

    शाम को मैं पार्वती को लेकर उसके घर आ गया। सुबह के नास्ते के बाद पूरे दिन कुछ नही खाया था इसलिए बड़ी भूख लगी थी। पार्वती को कहने में संकोच हो रहा था। वह सारा दिन आंसू बहाती रही थी। उसने भी कुछ नही खाया था। 

    'शहर में ढाबे वाली महिला के ढाबे पर खाना खाकर आते हुए दो-चार रोटी पार्वती के लिए भी ले आऊंगा।’ यह सोचते हुए मैने दोबारा शहर जाने का मन बना लिया।

  'मैं थोड़ा शहर तक हो कर आता हूं पार्वती।’ मैं पार्वती से बोला।

   'लगता है शहर में आप पीने जा रहे हो। सुबह से आप ने कुछ नही खाया, मैं खाना बना रही हूं, जल्दी आ जाना।’ पार्वती बोली।

   'मैं क्या तुझे अमली लगता हूं पार्वती? लत नही लगाई है, हां कभी कभार थोड़ी बहुत पी लेता हूं। मैं वहां पीने नही अपने और तुम्हारे लिये खाना लाने ही चला था। सुबह से तुमने भी कुछ नही खाया। सोचा अब क्या बनाओगी।’ मुझे उसकी बात नागवार गुजरी। 

   पार्वती को अपनी गलती का अहसास हुआ तो वो मेरे नजदीक आ गई बिल्कुल कामनी की तरह।

   'लगता है आपको मेरी बात बुरी लगी। इधर सारे लड़के मस्ती मारने आते हैं और हर रोज शाम को पी कर हुड़दंग मचाते हैं। आप भी इधर सैर सपाटे पर आए थे न इसलिये बोला था।’ पार्वती सफाई देते बोली।

   'और मैं आपके घर शराब पी कर हुड़दंग मचाऊंगा, कामनी की लाश पर जश्र मनाऊंगा क्यो?’ मासूम कामनी के साथ हुई दरिदंगी के बारे मन में विचार आया तो मेरी आंखों में आंसू आ गए।  

   'मैने ऐसा कब कहा श्याम।’ पार्वती जोर जोर से रोने लगी तो मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ। बिन सोच विचारे पता नही क्या-क्या बोलता जा रहा था। बड़ी मुश्किल से पार्वती को चुप करा पाया। 

   पार्वती ने खाना बनाया तो मैं चार-पांच रोटी खा गया। उसने आलू की सब्जी में पहाड़ों पर उगने वाली लम्बी हरी फलियां डाली हुई थी जो मुझे बहुत स्वादिष्ट लगी। वह रोटी नही खाना चाहती थी मगर मैने उसे जबरन दो रोटी खिला ही दी।

    रात को मैं फिर कामनी वाले कमरे में आ गया। आज मुझे उस कमरे में डर नही लग रहा था। दिन भर थका होने के कारण मेरी आंखें बोझिल होने लगी। मैं अब सोना चाहता था। मुझे लग रहा था कि मैने बहुत काम कर लिया है, फिर एक बवंडर सा उठता दिखाई दिया जिसमें बादलों के अंदर होने वाली चमक से सारे क्षेत्र की पहाडिय़ां बार-बार जगमगाने लगी। रोशनी गहरी खाईयों की जमीन से टकराती तो वहां पानी की छोटी-छोटी नदियां छोटे-बड़े पत्थरों के उपर से बहती हुई दिखाई देने लगती। तभी मुझे वहां पार्वती नदी के पानी में फंसी हुई दिखाई देने लगी। वह चट्टानों को पकड़ कर पानी से बाहर निकलने का असफल प्रयास कर रही थी। 

   मैं कुछ देर तक बिजली की चमक में उसे ध्यान से देखता रहा फिर नीचे खाई में उतर गया। कुछ देर में ही मैं उस चट्टान पर पहुंच गया जिसे पकड़ कर पार्वती उपर आने के लिये प्रयास कर रही थी। 

  'अपना हाथ मेरे हाथ में दो पार्वती.....मैं तुझे उपर खींच लूंगा।’ मैने पत्थर पर लेटते हुए एक हाथ से पत्थर का एक उभरा सीरा पकड़ा और अपना दूसरा हाथ नीचे कर दिया मगर वह मेरे लटके हुए हाथ के पंजे से भी अभी चार-पांच फूट नीचे थी। 

   'पत्थर को आगोश में लेने की आवश्यकता नही है श्याम, सीदे खड़े हो जाओ।’ पार्वती मेरी तरफ देख कर मुस्कराई तो में हैरानी से उसे देखता हुआ खड़ा हो गया।’

   'ये लो मेरा हाथ अपने हाथ में, बस इसे कभी छोडऩा मत।’ यह कह कर पार्वती ने नदी में से अपना हाथ मेरी तरफ किया तो वह लम्बा हो कर मुझ तक पहुंच गया। उसे देख मैं जैसे जड़ हो कर रह गया। फिर उसका दूसरा हाथ भी उपर आया और वे दोनों हाथ मेरी कमर से लिपट गए। 

   'हा, हा, हा,...तुम बार-बार धोखा खा जाते हो श्याम, मैं पार्वती नही कामनी हूं। कितना रोमांटिक है ये नदी का किनारा। कितनी ही झुलसाने वाली गर्मी हो रात के तीन बजे के बाद तो नदी के पानी से हवा टकरा कर जब तुम्हारा तन-मन भीगोती है तो तुम्हे मस्त कर ही देती है। ये हरी भरी हसीन वादियां, बाहों में मेरे जैसी अप्सरा का हसीन सपना, यानि सपनों में सपना।’ वह ठहाके लगा कर हंसती हुई क्षण भर में ही चट्टान पर मेरे पास आकर खड़ी हो गई।

   'कामनी ये तुम हो, अच्छा तो हाथ लम्बे कर मुझे डरा रही थी।’ मैने उसके बाजुओं के नीचे से कमर पर हाथ ले जाकर देखा तो उसकी पसलियों से मेरी उंगलियां जा टकराई। वह वाकई कामनी थी।’

  'हां ये मैं हूं श्याम, तुम्हारी महबूबा। ये चट्टाने, ये पत्थर घायल कर देते हैं मुझे। आओ यहां से नीचे मैदानों में चलते हैं।’ कामनी मुझे खींचकर नीचे पानी की तरफ ले जाने लगी तो मैने कस कर चट्टान को पकड़ लिया। 

   'नही..नही, मैं कहीं नही जाऊंगा, पार्वती घर पर अकेली होगी... छोड़ दो मुझे।’ मैने उसे दूर धकेलना चाहा मगर वह किसी लता की तरह मुझ से चिपट गई। मुझे ऐसा लगा जैसे कोई लिजलीजी छिपकली मेरे जिस्म पर चिपक गई हो। मैने एक झटके से उसे पीछे हटाया, ऐसा लगा जैसे मेरी आंखे उन्नीदी हो रहीं हों। एक हल्का झटका सा लगा तो वहां दूर कहीं पहाड़ी गांव के शिव मंदिर से भजनों की आवाजें सुनाई देने लगी।   

   'अब मैं यहां एक रात भी नही ठहरूंगा। मैदानों से तो ठण्डी हवाओं के मजे लेने आया था, कुछ मस्ती मारने आया था पर लगता है मैं यहां भूत-प्रेतों की दुनिया में आ गया। अब तो मुझे पार्वती पे भी शक होने लगा था कि कहीं वो भी भटकती हुई कोई रूह न हो।’   

    सुबह चाय के साथ दो परांठे खाते ही मैने पार्वती से विदा मांगी तो वह आंसू बहाते हुए बोली- ‘आज पुलिस वाले पोस्टमार्टम कर कामनी की लाश दे कर जाएंगे। उसका आज अंतिम संस्कार करना है, मैं यहां अकेली हूं। आप बस एक दिन और रूक जाओ।’ पार्वती का स्वभाव बिल्कुल बच्चों की तरह था। वह कभी भी रो पड़ती थी। न जाने क्यों मुझे ऐसा अहसास हो रहा था जैसे वो मुझे दिल ही दिल चाहने लगी है, या हो सकता है शायद अपना हमदर्द समझ रही हो। उसके दिल में कुछ भी हो मैं केवल उसकी इन्सानियत के नाते मदद कर रहा था। 

   ‘ठीक है, अंतिम संस्कार करवाने के बाद मैं आज शाम को ही निकल जाऊंगा। बस फिर मुझे मत रोकना।’  पार्वती के आंसू मुझ से देखे नही जाते थे पर मैं परदेशी आदमी इस बेचारी की क्या मदद कर सकता था। शाम तक रूकने का मैने और इरादा कर लिया। 

  पार्वती मेरे साथ मोटरसाइकिल पर बैठ शहर और आसपास के छोटे-छोटे गांवों में अपने जान पहचान वालों को कामनी के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए खबर दे आई। दोपहर बाद पुलिस शव वाहन में कामनी की लाश लेकर आ गई और जरूरी कागजी कार्यवाही कर वापिस चली गई। 

   मुझे ऐसा अहसास हुआ की यहां के लोगों का जीवन हमारे हिसाब से बहुत कठिन है। पता नही क्यों इन्होने श्मशान घाट भी पहाड़ की उपरी चोटी पर बना रखा था। उपर चढ़ते-चढ़ते मेरी सांसे फूल गई मगर वहां आए पहाड़ी लोग कामनी की लाश अर्थी पर उठाकर ऐसे पहाड़ के उपर चलते रहे जैसे हम मैदानों में चलते हैं। श्मशान में खड़े एक बरगद के पेड़ को देखकर मुझे बहुत आश्चर्य हो रहा था। यहां पूरे इलाके में मैंने बरगद का एक भी पेड़ नही देखा था। शहर, गांवों से आए लोगों ने यहां के रीती रिवाजों के हिसाब से कामनी की लाश को श्मशान ले जाकर दाह संस्कार कर दिया।      

    कामनी के दाह संस्कार करने में शाम के पांच बज गए। वापिस घर आए तो पार्वती ने सभी के लिए चाय बना दी। मैने उसके साथ मिलकर वहां आए मैहमानों को चाय परोस दी। जब सभी चले गए तो मैं भी नहाने के लिए जल्दी से ये सोचता हुआ बाथरूम में घुस गया कि अब यहां से निकलने में ही मेरी भलाई है नही तो कामनी मुझे कल की तरह जरूर अपने साथ ले जाने का प्रयास करेगी। कल तो किसी तरह बच गया था मगर जरूरी नही आज भी बच जाऊ। मुझे असमय नही मरना। अब मैं जल्दी से इस सारे झमेले से निकल जाना चाहता था। तेजी से नहा कर जब पार्वती के कमरे में आया तो वह हाथ में चाय का कप लिए मिली- ‘सभी को चाय पिला दी आप ने तो पी ही नही।’

   ‘इच्छा तो नही है, पर लाई हो तो पी ही लेता हूं। मेरे किराये, खान-पान का जल्दी से टोटल जोड़ दो पार्वती। मैं यहां अब एक पल भी नहीं रूकना चाहता। अब मैं नीचे मैदानों में जाकर ही चैन की सांस लूंगा।’

   ‘सूर्यास्त हो गया है, रास्ता बड़ा दुर्गम, खतरनाक है। उपर से आप इस क्षेत्र की भुगोलिक स्थिती से भी वाकिफ नही हो, बस आज रात और रूक जाओ, सुबह उठते ही चले जाना।’ पार्वती इतने अधिकार पूर्ण स्वर में मुझ से बोली की मैं उसके चेहरे की तरफ देखता ही रह गया। 

    ‘नही, नही, अब मैं एक पल भी यहां नही ठहरूं गा। सच तो ये है कि मुझे यहां डर लगता है। मैं जिस रास्ते से आया था उसे अच्छी प्रकार जान गया हूं। फिर मोटरसाइकिल मेरे पास है, मुझे यह मंझिल तक पहुंचा ही देती है।’ मैं पार्वती से कुछ सख्त लहजे में बोला। 

   ‘ठीक है, आप चाय तो पी लो, तब तक मैं भी नहा लेती हूं। अब मैं आपको रूकने के लिए नही कहूंगी।’ मैने उसे ध्यान से देखा, उसकी आंखों में कहीं घोर निराशा के भाव थे। आखिर क्या चाहती है ये लड़की मुझसे?‘ मै सोचने लगा। मुझे चाय पकड़ा कर पार्वती बाथरूम में चली गई। मैं उसके कमरे में बैठकर चाय पीने लगा। 

   अंधेरा हो गया था। ‘पता नही कितनी देर तक नहाएगी।’ मैं अब और इंतजार नही कर सकता था। अधिक से अधिक पन्द्रह-सोलह सौ रूपये ही बने होंगे।’ सोचते हुए मैने जल्दी से चाय पीकर हजार के दो नोट मेज पर कप के नीचे रख दिये फिर अपना पिटठू बैग उठाकर कमर पे लगाया और मोटरसाइकिल को किक मार लाइट जला कर वहां से चल दिया। 

     पार्वती के घर से निकला तो अंधेरा गहराने लगा था। ‘तेजी से चला तो अधिक से अधिक दो-तीन घण्टे में मैदानों में पहुंच जाऊंगा। उसके बाद तो कोई चिंता ही नही है्।’ सोचता हुआ मैं मोटरसाइकिल तेजी से चलाने लगा। वहां पार्वती के घर से पहाड़ी शहर तक के पगडण्डी नुमा कच्चे रास्ते पर भी मैं सत्तर की स्पीड पर मोटरसाइकिल दोड़ाने लगा। 

    मोड़ पर जब मैं बड़े काले पत्थर के पास आया तो कामनी की याद आ गई। सिर को हल्का झटका दे दिमाग में उठने वाले विचारों से छुटकारा पाते हुए जैसे ही मैने मोड़ काटा तो आगे देख कर मेरे होश उड़ गए। वहां कामनी रास्ते के बीच में आज फिर मैमना लिए खड़ी थी। 

    मैने जोर से ब्रेक लगाए मगर व्यर्थ, बाइक कामनी के शरीर के बीच से निकल गई। ‘चोट तो नहीं लगी कामनी।’ मैं बाइक छोड़ कामनी के शरीर को पागलों की तरह टटोलने लगा मगर आज वहां शरीर था ही नही। एक जिंदा परछाई थी जिसमें मेरे हाथ आर-पार हो रहे थे। हड़बड़ी में मैं ये भूल ही गया की कामनी जिंदा नही है। वह एक प्रेत-आत्मा है जो मुझे भी अपने साथ ले जाना चाहती है। 

   ‘हा हा हा, देख मैं बिल्कुल ठीक हो गई श्याम।’ कामनी ने जोर से हंसते हुए कुर्ती उतार कर अपनी पीठ मेरी तरफ कर दी। वाकई वहां कोई घाव तो क्या घाव का निशान भी नही था। चांदनी रात में उसकी पीठ संगमरमर की तरह सुंदर चीकनी दिखाई दे रही थी मगर आज मेरा ध्यान उसकी सुंदरता पर नही था।

   ‘बहुत अच्छा हुआ कामनी तुम ठीक हो गई।’ मेरे मुंह से अनयासा ही निकल गया मगर अब अचानक मुझे इस सचाई का भी अहसास होने लगा था कि मैं कहां खड़ा हूं और किसके साथ बात कर रहा हूं। कामनी की वास्तविकता के बारे में सोच कर वहां सर्दी में भी मेरे पसीने छुटने लगे। 

     ‘मुझसे डर मत श्याम। मैं तो बस दीदी को ये मैमना देने के लिए रूकी हूं। मेरे जाने के बाद ये बेचारा अकेला हो जायेगा। बस वो आती ही होगी। अब यहां वो ही रहा करेगी।’ कामनी मुस्करा रही थी मगर मैं अब उसकी आंखों में बैचेनी के लक्षण सपष्ट देख रहा था। अब उसकी हंसी मुझे बिल्कुल खोखली लग रही थी। ऐसे जैसे जबरन अपने होठों को हंसने को मजबूर कर रही हो। उसकी चंचलता, मासूमियत, भोलापन जैसे कहीं गायब हो गया था।

  ‘दीदी...मैमना, मै समझा नही कामनी।’ मैने उलझन भरी नजरों से उसकी तरफ देखा।

   ‘अब समझ जाओगे, लो वो आ गई दीदी।’ मैने उधर देखा जिधर कामनी देख रही थी।  

 ‘ओह! ये तो पार्वती है।’ मेरे मुंह से निकला और मैं दंग हो उधर देखता ही रह गया। पार्वती हाथों में लाल चूड़ा, मांग में सिंदूर, माथे पर टिका और गले में मंगल सुत्र पहने थी। मुझे बहुत हैरानी हो रही थी की आज ही तो कामनी की लाश का क्रियाक्रम करके हम आए हैं और आज ही पार्वती दुल्हन बनी चली आ रही थी। आखिर चक्कर क्या है ये? 

   ‘तेरी दीदी की शादी हो गई क्या?‘ मैने कामनी की तरफ देखा।

   ‘अभी तक तो नही हुई। शादी का क्या है, अभी हो जाएगी।’ कामनी फीकी मुस्कान के साथ बोली। मोड़ पर पहाड़ की तरफ होने के कारण पार्वती मुझे नही देख पा रही थी जबकि चांदनी रात में सामने से आती हुई मुझे वह सपष्ट दिखाई दे रही थी।  

   ‘शायद शहर जा रही है, हो सकता है वहां इसने कोई पसंद कर रखा हो, अकेली होने की वजह से उससे जल्दी शादी करवाना चाहती हो। मुझे इसके घर से ऐसे नहीं आना चाहिए था। मैं पार्वती को बिना बतलाए ही चला आया था। पर कोई बात नही चलो अब बाइक पर बैठा लेता हूं, जहां ये जाना चाहती है इसे वहां छोड़ दूंगा।’ अभी मैं सोच ही रहा था कि पार्वती यंत्रवत सी चलती हुई उस बड़े काले पत्थर के उपर चढ़ गई जिसके नीचे खाई में कामनी की लाश मिली थी। उसने खाई की तरफ मुंह किया ही था कि एक क्षण में ही मेरी छटी इंद्री जागृत हो गई।

   ‘नही पार्वती, ऐसा मत करना।’ अचानक मेरे गले से एक चींख निकली और मैं किसी बंदूक से निकली गोली की तरह पत्थर की तरफ भागा। इससे पहले की पार्वती खाई में छलांग लगाती मैने उसे अपनी बाहों में थाम लिया।

   ‘आप... गए नही अभी।’ मुझे देख उसके होठ थरथराए।

  ‘ये क्या करने चली थी पगली। मुझे कह कर तो देखती, मैं तेरी हर समस्या का समाधान करने की कोशिस करता।’ मैने उसे गोद में उठा कर पत्थर से नीचे छलांग लगा दी।

  'सारा परिवार तो चला गया श्याम, फिर मैं ही अकेली जी कर यहां क्या करूंगी। मुझ अकेली को  भी तो अपने सूने घर में डर लगता है। आप तो अपने घर चल दिए, मैं कहां जाऊं? घर का हर कमरा, हर कोना मुझे निगलना चाहता है, फिर बार-बार मरने से तो अच्छा है एक ही बार मर जाऊं।’ बोलते-बोलते पार्वती की आंखों से आंसूओं की अविरल धारा बहने लगी।   

  'दुल्हन बन कर मरने चली है। कोई जीवन साथी देख कर शादी क्यों नही कर लेती। अकेले पन का भी इलाज हो जाएगा।’

  'शादी तो मां बाप करते हैं, मैं किससे करूं?’ रोते हुए पार्वती बड़ी मुश्किल से ये बात कह पाई। 

   'ओह, तो ये बात है, अच्छा तुझे मैं कैसा लगता हूं? ’ मैं पार्वती के चेहरे को हाथ मे ले उसकी आंखों में झांकते हुए बोला। उसको बचाने का एक ही हल मेरे पास था। और वो था शादी। मैं लाल जोड़े में ही पार्वती को अपनी मां के पास ले जाकर कहूं कि आ गई आप की बहू। मैं इससे शादी कर आया हूं। बस थोड़ी सी ढांट-ढपट जरूर होगी मगर फिर वह मान जाएगी। 

   'जी।’ पार्वती मुंह से केवल इतना ही बोल पाई। उसकी आंखों में मेरे लिए चाहत का, प्यार का एक समन्दर हिलोरे ले रहा था। इसका अहसास मुझे उसके घर पर भी एक-दो बार हुआ था मगर मैने ध्यान ही नही दिया। उसने मेरे कंधे पर सर रख अपनी आंखे बंद कर ली तो मैं उसके बिना कुछ कहे ही सब कुछ समझ गया। उसके जिस्म से मदहोश कर देने वाली वैसी ही सुगंध आ रही थी जैसी उस रात को कामनी के वजूद से आई थी।

   'कामनी।’ मैने मोड़ पे देखा तो कामनी वहां कहीं दिखाई नही दी। मैने पार्वती को बाइक पर बैठाया और वापिस उसके घर आ गया। 

  'पार्वती हमारा काम गांव में खेती-बाड़ी का है जिसमें हम धूल-मिट्टी में सने रहते हैं। एक बार फिर अच्छी प्रकार सोच लो क्या मैदानों में रह पाओगी।’ मैं वापिस आ पार्वती के बैड पर बैठते हुए बोला। मैं पार्वती को अपने बारे में सब कुछ बता देना चाहता था।

  'आप जिस हाल में रखेंगे मैं रह लूंगी। बस मुझे अब यहां से कहीं दूर ले चलो।’ कहकर उसने बैड पर बैठते हुए मेरे सीने पर सर टिका लिया।

   'वैसे हमने तीन-चार गाय, भैंसे पाली हुई हैं। तुम दुबली-पतली नही रहोगी, दूध, घी खा पीकर मोटी हो जाओगी।’ मैने उसके बालों में हाथ फिराते हुए कहा तो वह हंस पड़ी। 

   'और यहां की भी चिंता मत करना, हर वर्ष गर्मियों में कम से कम दो महीने के लिये यहां आ जाया करेंगे। गर्मी से भी निजात मिल जाया करेगी, मेरा भी कुछ सैर सपाटा भी हो जाया करेगा और तुम अपने रिस्तेदारों को भी मिल लिया करना।’

   'जैसा आप उचित समझो। मैं खाना बना देती हूं।’ कहकर पावर्ती खड़ी होने लगी तो मै वापिस उसको खींच कर बाहुपाश में भरकर बोला- 'मुझे भूख नही है। तुम अपने लिए बना लो पार्वती।’  

  'मुझे भी कुछ नहीं खाना। कल हम शहर जाकर कोर्ट में जा शादी कर लेंगे।’ वह खुश होते हुए बोली।

    कुछ देर तो साधारण सी घर-बार बसाने की बातें हुई फिर रोमांटिक बातों का दौर चलने लगा। अब तो पार्वती मेरी ही थी, मैं आज इस से भी आगे बड़कर प्यार का दौर चलाना चाहता था। मेरे हाथ जब उसके संगमरमर जैसे सुंदर जिस्म पर आवारगी करने लगे तो वह कुछ बेचैन सी होने लगी। मेरे हाथ दूर हटाने लगी।

   ‘तुम मेरी हो प्रिय आओ हम सदा के लिये एक हो जायें।’ मैं बलात उसके गुलाब की पंखुड़ियों जैसे अधरों का रस पीते बोला। 

    ‘शर्म करले कुछ पार्वती के बच्चे। रात को तो लेटते ही सो गया अब मंदिर में भजनों की आवाज आने लगी है तो आशिकी सूझ रही है।’ पार्वती मुझे दूर धकेलते हुए उठकर बाथरूम में घुस गई। कुछ देर बाद वापिस आ कर वह मेरी बगल में लेट गई। मुझे लगा यह यों ही इन्कार कर रही है, अगर इसे इन्कार ही करना होता तो जाकर कामनी के कमरे में सो जाती। यूं आकर फिर से मेरे पास न लेटती। 

   ‘तुम मेरी हो प्रिय, हम जन्मों जन्मों तक साथ रहेंगे। मुझ से यू दूर मत जाओ।’ उत्तेजना वश मैं लड़खड़ाती जुबान से बोला और पार्वती को वस्त्रवहीन करने लगा। अब की बार उसने बिल्कुल विरोध नही किया और मुझ से लिपट गई। थोड़ी देर में ही प्यार का एक लम्बा दौर चला, अधरों से अधर मिले, जिस्म से जिस्म और कमरे में एक तूफान खड़ा हो गया। 

   मैं पार्वती के सुंदर जिस्म को अपनी बाहों में मचलते देख रहा था। वह एक आग का तूफान था जिसकी बागडोर मेरे हाथ में कुछ देर तक रही मगर फिर पार्वती ने कमान संभाल ली, उसमें गजब की चुस्ती-फुर्ती थी। मैं हैरान था की वह मुझ से ऐसा व्यवहार कर रही थी जैसे वषों से मेरी हमदम बनी हुई हो। प्यार के चर्म क्षणों में जब पार्वती का सिर मेरे कान के पास से गुजरा तो उसके बालों में लगी पिन मेरे कान में जोर से चुभ गई।

‘ओह! यार पार्वती लगता है तूने मेरे कान से खून निकाल दिया। कितनी बार कहा की बालों से पिन निकाल लिया कर।’ 

   ‘हे भगवान! क्या हो गया है इस बंदे को? बस केवल पार्वती-पार्वती रट रहे हो, भगवान शंकर जी तो तुझे याद नही आते। राम नाम जपने का ये सही समय है क्या? आज तुझे पार्वती जी की कैसे याद आ रही है। अगर राम का नाम लेना है तो नहा धोकर सुबह धूप बत्ती लगा कर लिया कर। पिन लग गई है तो मैं क्या करूं। मुझे पता था सुबह-सुबह तुम्हारा आशिकी का मूड बन जायेगा। लोग राम का नाम लेते हैं और तू आंखे बंद कर मुझे परेशान करता है।’ मेरी पत्नी मुझे ढांटते हुए बोली और अब मैं जड़ सा होकर आवाक उसके मुहं की तरफ देख रहा था।

   ‘ये क्या अनर्थ हो गया। पत्नी मेरे पास से बाथरूम करने उठी थी। मैने उठकर कपड़े भी उतारे मगर मैं फिर भी सपनों से बाहर नही आया। सपने में पार्वती से प्रणय मिलन कर रहा था और यर्थात में पत्नी से। इस हकीकत का तो मुझे अब पता चला जबकि मैं कार्य पूरा कर चुका, यानी जितना मेरा नैतिक पतन होना था हो चुका। हम पुरूष महिलाओं को ही चरित्रहीन होने पर कोसते रहते हैं मगर खुद नही देखते की हम क्या हैं? इससे क्या फर्क पड़ता है कि अब मैं पत्नी के साथ हूं। आभासी दुनिया की वास्तविकता में तो मैं एक दूसरी औरत का पति बन गया था। एक ऐसी औरत का जिसका वजूद दुनिया में कहीं नही था। बस केवल मेरी कल्पना में ही था।’ सोचते हुए मैने पत्नी की तरफ दयनीय नजरों से देखा मगर वह प्रातःकाल के शीतल पलों में दोबारा निद्रा रानी की आगोश में चली गई।

 

                                                                                                               *****

संक्षिप्त लेखकीय परिचय- 

नाम- नफे सिंह कादयान, पता:- गांव- गगन पुर, जिला-अम्बाला, डाकघर- बराड़ा-133201 (हरि.) mob.9991809577

जन्म- 25 मार्च 1965, कार्य– खेती-बाड़ी, नव-लेखन। Email-nkadhian@gmail. com, 

F.B-nafe. singh85@gmail. com, Twitter-@nskadhianwriter, Blog-nkadhian. wordpress. com, 

हरियाणा साहित्य अकादमी रचनाकार डॉट कॉम पर साहित्यकार-N.-10, 


मुख्य सम्मान:-

हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा व्यवस्था कहानी के लिये सम्मान। वर्ष-2009

B.D.S साहित्य अकादमी नई दिल्ली द्वारा श्रेष्ठ लेखन के लिये डॉक्टर भीमराव अम्बेदकर राष्ट्रीय फैलाशीप अवार्ड वर्ष-.2013

हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा ‘चैतन्य पदार्थ’ (विज्ञान निबंध पदार्थ सरचना) पुस्तक के लिये श्रेष्ठ कृति पुरस्कार-वर्ष 2017, 


रचनाएं:-

10 पुस्तकें:- ( विज्ञान, राजनीति, सामाजिक विषयों पर, जिसमें एक उपन्यास, एक हरियाणवी रागणी संग्रह है प्रकाशित और एक उपन्यास, कथा संग्रह, एक इंजिनियरिंग विषय पर टंकित पुस्तक अप्रकाशित। ) 

कहानियाँ, आलेख, संस्मरण, गजल़, कविता, पत्र, दैनिक ट्रिब्यून, हंस, हिमप्रस्थ, हरिगंधा, कथायात्रा, शुभ तारीका, जनपथ, हरियाणा साहित्य अकादमी की व अन्य पत्र-पत्रिकाओं, पुस्तकों में प्रकाशित। 

मेरा जीवन जीने का तरीका-मस्त रहो, सदा खुश रहो, जो खा लिया अपना, रह गया बैगाना। 

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Monday, July 2, 2018

Setu ....................... सेतु: व्यवस्था परिवर्तन: नफे सिंह कादयान

Setu ....................... सेतु: व्यवस्था परिवर्तन: नफे सिंह कादयान: नफे सिंह कादयान    पृथ्वी को भ्रष्टाचार, आतंकवाद, हत्या, बलात्कार, चोरी-डकैतियों, गरीबी और युद्धों से मुक्त कर और भी सुंदर प्रदूषण मुक्त...